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05 March 2016

फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया

FIR क्या है ?कानूनी प्रकिया के तहत कोई भी वह अपराध या अपराधिक घटनाये जिसमें कानून के तहत सजा या जुर्माना हो सकता है वैसी  किसी अपराध या घटना के बारे में जो सुचना प्राप्त होती है और उसके ऊपर मुकदमा दाखिल किया जाता है उसे हम फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट(FIR) कहते है! 


Policeman-First Information Report
FIR
जरुर पढ़े :6 कॉमन गलतिया अक्सर एक आई ओ सीन ऑफ़ क्राइम पे करता है

किसी अपराधी को किसी भी अपराध में सजा दिलाने में जो अहम रोल प्ले करता है वो FIR है और अगर इसके लिखते समय पुलिस द्वारा विशेष येतिहात नहीं वार्ता गया तो अपराधी को सजा दिलाना बहुत मुश्किल हो जाता है और पुलिस का चारो और बदनामी होती है और अपराधी छुट जाते है !
कुछ बेसिक गलतिय है जो एक पुलिस मैन  FIR लिखते समय करता है जिसके कारण FIR सही तरह से फाइल नहीं होता है और अपराधी कोर्ट से बरी हो जाते है :

  1. यह देखा गया है की बहुत से केसों में पुलिस FIR फाइल करते समय  उपलब्ध फैक्ट्स के ऊपर ध्यान नहीं देती है और विक्टिम या गवाह  के द्वारा बताई हुवी मनगढ़ंत कहानियो के ऊपर FIR फाइल कर देती ! ऐसे FIR कोर्ट के कसौटी पे टिकते नहीं है और FIR की स्टोरी और फैक्ट मिसमैच हो जाते है और ऐसे केसों को कोर्ट विश्वास नहीं करती है और पुलिस केस हार जाती है ! इसलिए पुलिस को FIR फाइल करते समय ये धयान रखना चाहिए की विक्टिम या गवाह जो कहानी सुना रहा है वो क्या अभी उपलब्ध साक्ष्य से मेल खता है या की विक्टिम या गवाह किसी वेस्टेड इंटरेस्ट से कहानिया बना रहा है.अगर पुलिस को ऐसा लगता है तो उसे अपना विवेक इस्तेमाल कर उपलब्ध साक्ष्य को ज्यादा अहमियत देना चाहिए.
  2. अपराध घटने की जगह को फिजिकल या सिर्कमस्तन्सिअल  एविडेंस से मेल नहीं खना ! बहुत बार होता है की पुलिस विक्टिम या गवाह के द्वारा बताये गए अपराधिक घटना स्थल को लिख देती है और फिजिकल वेरिफिकेशन के समय ये मैच नहीं करती की विक्टिम या गवाह जो जगह बताया था और फिजिकल वेरिफिकेशन का इंसिडेंट पॉइंट एकही है ! ऐसे मिसमैच केस जब कोर्ट में जाता है तो कोर्ट बेनिफिट ऑफ़ डाउट का फायदा देते हुवे अपराधी को छोड़ देता है.
  3. कभी कभी पुलिस के रिपोर्ट में चोट और बॉडी पे पहने हुवे कपडा तथा पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के चोट और बॉडी पे पहने हुवे कपडे अलग अलग होने के कारण भी कोर्ट के मन में डाउट पैदा होआ है !बहुत बार ऐसा भी होता है की पुलिस रिपोर्ट में बॉडी की साइज़ और कलर पोस्ट मोरटम रिपोर्ट में मेंशन साइज़ और कलर से भिन्न हो जाता है जिसके कारण भी कोर्ट के मन में डाउट पैदा होता है और अपराधी बरी हो जाते है ! इसलिए FIR ये सब लिखते समय पुलिस को दोनों रिपोर्ट को मिलाना चाहिए और आगरा किसी भी रिपोर्ट में कोई गलती है उसे तत्काल दूर करना चाहिए.
  4. FIR लिखते समय ये भी बहुत अहम है की सही IPC का सेक्शन मेंशन किया जाय बहुत बार देखा गया है की छोटी सी भी झगडा पे 307 लगा देते है जो की मेडिकल रिपोर्ट आने पे वो गलत साबित हो जाती है ! और कोर्ट में पुलिस केस हर जाती है  इसलिए FIR में correct  IPC का सेक्शन लगाये ! 
  5. अगर FIR अपराध घटने के स्थान पे जाने से पहले लिखा गया है तो उसे FIR स्पस्ट लिख देना चाहिए की FIR क्राइम सिन विजिट के पहले लिखी गयी जिसे की कोर्ट को मालूम पड़े !

FIR किसी केस का नीव होता है और इसको लिखते समय सही तरीके से नहीं लिखा गया तो अपराध कितना भी संगीन क्यों न हो अपराधी को बच निकलना असान हो जाता है और पुलिस की जग हसाई होती है और पुलिस कितना भी सत्य क्यों न बोले कोई  उसके ऊपर विश्वाश  नहीं करता.


जरुर पढ़े :फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट(FIR) में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया


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