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7 बड़ी गलतियाँ जो FIR दर्ज करते समय पुलिसकर्मी अक्सर कर बैठते हैं |
भूमिका (Introduction):
जब कोई अपराध होता है, तो पीड़ित की सबसे पहली उम्मीद होती है पुलिस। और पुलिस की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है FIR दर्ज करना। FIR यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट(First Information Report) न सिर्फ न्याय की शुरुआत है, बल्कि यही वह कागज़ है जिस पर आगे की पूरी जांच और कोर्ट की कार्यवाही निर्भर करती है।
लेकिन क्या हर FIR सही तरीके से दर्ज होती है? क्या हर पुलिसकर्मी को इसकी प्रक्रिया और नियमों की पूरी जानकारी है? अफ़सोस की बात यह है कि नहीं। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया को लेकर भले ही कानून सख्त और स्पष्ट हो चुका है, लेकिन ज़मीनी हकीकत में आज भी कई ऐसी बड़ी गलतियाँ होती हैं जो केस को कमजोर कर देती हैं और पीड़ित को न्याय से दूर कर देती हैं।
Advance Scientific Course – Delhi Police द्वारा दी गई ट्रेनिंग में भी इन गलतियों पर विशेष ध्यान दिया गया है। वहीं BNSS 2023 और BNS 2023 जैसे नए कानूनों ने FIR दर्ज करने की प्रक्रिया को पहले से अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बना दिया है। इसके बावजूद पुलिसकर्मी कई बार अनजाने में या जल्दबाज़ी में ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं जो बाद में बड़ी परेशानी का कारण बनती हैं।
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इस ब्लॉग में हम ऐसी ही 7 बड़ी गलतियों पर चर्चा करेंगे जो FIR दर्ज करते समय अक्सर हो जाती हैं। साथ ही जानेंगे कि BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया को सही तरीके से कैसे अपनाया जाए ताकि जांच मजबूत हो और न्याय सुरक्षित रहे।
1. शिकायतकर्ता का बयान ठीक से न लिखना
FIR दर्ज करने का सबसे पहला और सबसे जरूरी चरण होता है शिकायतकर्ता का बयान। अगर यहीं गलती हो जाए, तो पूरी जांच की दिशा ही भटक सकती है। कई बार पुलिसकर्मी जल्दबाज़ी में या बिना पूरी बात समझे, FIR में अधूरी या अस्पष्ट जानकारी लिख देते हैं। यह गलती बाद में न केवल केस को कमजोर करती है, बल्कि कोर्ट में भी संदेह पैदा करती है।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के अनुसार, जब कोई व्यक्ति अपराध की सूचना देता है, तो उसे शब्दशः और विस्तार से दर्ज किया जाना चाहिए। Advance Scientific Course – Delhi Police की ट्रेनिंग में भी यह बताया गया है कि बयान में कम से कम 11 मुख्य प्रश्नों का उत्तर होना चाहिए — जैसे क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, क्यों हुआ, किसने किया, कैसे किया, आदि।
शिकायतकर्ता की भाषा में ही उसका बयान लिखा जाना चाहिए। और फिर उसे पढ़कर सुनाया जाए, ताकि वह अपनी बात से संतुष्ट हो सके। अक्सर देखा गया है कि पुलिस अपने अनुसार भाषा बदल देती है, जिससे अर्थ बदल जाता है। यह भी एक गंभीर गलती है।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया अब ज्यादा जिम्मेदारी के साथ जुड़ी है। अगर बयान में सच्चाई और विस्तार नहीं है, तो कोर्ट में उस FIR की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं।
इसलिए हर पुलिसकर्मी को चाहिए कि वह शिकायतकर्ता का बयान ध्यान से सुने, समझे और उसकी भावना के अनुसार दर्ज करे। यही केस की मजबूती की पहली सीढ़ी होती है।
2. FIR में समय और तारीख का उल्लेख न करना
किसी भी आपराधिक मामले में समय और तारीख की जानकारी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी घटना की खुद की जानकारी। यह न सिर्फ केस की सच्चाई को साबित करने में मदद करता है, बल्कि घटनाक्रम की विश्वसनीयता को भी मजबूत बनाता है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि पुलिसकर्मी FIR दर्ज करते समय इस महत्वपूर्ण हिस्से को या तो अधूरा छोड़ देते हैं या गलत दर्ज कर देते हैं।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के अनुसार, FIR में स्पष्ट रूप से यह लिखा होना चाहिए कि अपराध कब हुआ, कितने बजे हुआ और FIR दर्ज करने का समय क्या है। यदि FIR दर्ज करने में देरी हुई है, तो उसका कारण भी स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए। Advance Scientific Course – Delhi Police में इसे एक प्रमुख तकनीकी गलती माना गया है जो केस की वैधता को प्रभावित कर सकती है।
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समय और तारीख न होने से कोर्ट यह मान सकता है कि FIR बाद में मनगढंत तरीके से दर्ज की गई है। यह बचाव पक्ष के लिए एक बड़ा अवसर बन जाता है जिससे आरोपी को संदेह का लाभ मिल सकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि FIR दर्ज करते समय, समय और तारीख की एंट्री GD (जनरल डायरी) से मेल खाती हो।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में यह भी कहा गया है कि e-FIR और डिजिटल रिकॉर्डिंग में समय की स्टैम्पिंग (timestamp) स्वतः दर्ज होनी चाहिए। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और साक्ष्य मजबूत होता है।
3. FIR दर्ज करने में देरी और उसका औचित्य न देना
FIR दर्ज करने में देरी एक बहुत आम लेकिन बेहद गंभीर गलती है। यह वह चूक है जो केस को कमजोर बना सकती है और कोर्ट में संदेह पैदा कर सकती है। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में साफ तौर पर कहा गया है कि FIR जितनी जल्दी हो सके दर्ज की जानी चाहिए। यदि देरी हो, तो उसका कारण FIR में स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए।
Advance Scientific Course – Delhi Police में FIR के समय और देरी पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है। यदि कोई पीड़ित देर से थाने पहुंचा है, तो यह बताया जाना जरूरी है कि उसे आने में समय क्यों लगा। इसी तरह अगर पुलिस ने FIR लेने में देर की है, तो उसका भी स्पष्ट औचित्य दर्ज होना चाहिए।
BNSS 2023 के Section 173(1) में यह बात दर्ज है कि FIR में देरी होने की स्थिति में उसका विवरण होना अनिवार्य है। ऐसा न होने पर आरोपी पक्ष यह दावा कर सकता है कि FIR बाद में गढ़ी गई है या पुलिस ने मनमर्जी से रिपोर्ट तैयार की है।
यह भी देखा गया है कि संवेदनशील मामलों जैसे कि बलात्कार, दहेज उत्पीड़न, या गंभीर चोट के मामलों में अगर FIR में देरी होती है और उसका स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता, तो न्याय में बाधा आ सकती है।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया की सटीकता तभी बनी रहती है जब हर स्टेप समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से किया जाए।
4.FIR दर्ज न करके Preliminary Enquiry में उलझना
कई बार पुलिस अधिकारी ऐसे मामलों में भी सीधे FIR दर्ज नहीं करते, जहां वह अनिवार्य होती है। इसके बजाय वे पहले Preliminary Enquiry (PE) करने लगते हैं। यह एक घातक गलती है, खासकर तब जब मामला संज्ञेय अपराध का हो। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में यह स्पष्ट किया गया है कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर तुरंत FIR दर्ज की जानी चाहिए, न कि बेवजह प्रारंभिक जांच की जाए।
BNSS 2023 की धारा 173(3) के अनुसार, Preliminary Enquiry केवल उन मामलों में की जा सकती है जिनमें सजा 3 से 7 साल के बीच हो और केस में संदेहास्पद परिस्थिति हो। इसके लिए भी SHO को DSP या उच्च अधिकारी से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है। बिना अनुमति के PE करना SOP का उल्लंघन माना जाएगा।
Advance Scientific Course – Delhi Police में बताया गया है कि PE का गलत उपयोग अक्सर केस को कमजोर कर देता है। खासकर बलात्कार, अपहरण, मारपीट या हत्या जैसे मामलों में सीधे FIR दर्ज करना ज़रूरी है। अगर FIR दर्ज नहीं की जाती और मामला PE में उलझा रहता है, तो न्याय में देरी होती है और पीड़ित के अधिकारों का हनन होता है।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में Preliminary Enquiry का स्थान सीमित और नियंत्रित है। इसका प्रयोग समझदारी से और SOP के अनुसार ही किया जाना चाहिए।
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5. हस्ताक्षर न लेना या FIR की प्रति न देना
FIR दर्ज करते समय एक जरूरी कानूनी प्रक्रिया होती है – शिकायतकर्ता से उसका हस्ताक्षर लेना और उसे FIR की एक प्रति मुफ्त में देना। लेकिन कई बार पुलिसकर्मी इस बेहद जरूरी प्रक्रिया को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जो न सिर्फ SOP का उल्लंघन है बल्कि कानून का भी।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के अनुसार, जब शिकायतकर्ता मौखिक रूप से अपराध की सूचना देता है, तो पुलिस अधिकारी को उसे लिखित में दर्ज कर पढ़कर सुनाना होता है। इसके बाद उसकी सहमति से उस पर हस्ताक्षर लेना अनिवार्य है। यदि यह नहीं किया गया, तो यह FIR की वैधता पर सवाल खड़े कर सकता है।
Advance Scientific Course – Delhi Police में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि शिकायतकर्ता को FIR की एक प्रति देना उसका कानूनी अधिकार है। यह कॉपी मुफ्त में दी जाती है और इस पर अधिकारी की मोहर व तिथि होनी चाहिए। FIR की प्रति न देने से पारदर्शिता खत्म होती है और शिकायतकर्ता को आगे अपनी बात साबित करने में मुश्किल होती है।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में यह भी कहा गया है कि डिजिटल माध्यम से दर्ज e-FIR के मामले में भी पीड़ित को एक सॉफ्ट कॉपी भेजना अनिवार्य है। अगर यह स्टेप पूरा नहीं किया गया, तो पूरी कार्रवाई पर संदेह किया जा सकता है।
6.अपराध स्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग न करना
आज के डिजिटल युग में जहां हर कार्रवाई टेक्नोलॉजी के माध्यम से दर्ज की जा सकती है, वहां अपराध स्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग को नजरअंदाज़ करना एक गंभीर चूक मानी जाती है। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के तहत अब यह अनिवार्य है कि गंभीर मामलों में, विशेष रूप से जब अपराध स्थल से साक्ष्य एकत्र किए जा रहे हों, तो उसकी ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग की जाए।
BPRD SOP के अनुसार, अपराध स्थल पर पहुंचने वाला पहला अधिकारी यानी SHO या IO को तुरंत अपने मोबाइल या विभागीय कैमरे से वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू करनी चाहिए। इससे न केवल साक्ष्य की स्थिति सुरक्षित रहती है, बल्कि आगे की जांच भी पारदर्शी बनती है।
Advance Scientific Course – Delhi Police में यह बताया गया है कि यदि रिकॉर्डिंग नहीं होती या अधूरी होती है, तो कोर्ट में यह मान लिया जाता है कि साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की संभावना है। इससे पूरा केस कमजोर हो सकता है। वीडियो रिकॉर्डिंग में समय, तारीख, स्थान और संबंधित वस्तुओं को स्पष्ट रूप से कैद किया जाना चाहिए।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया अब e-Sakshya जैसे ऐप्स को भी प्रोत्साहित करती है, जो रिकॉर्डिंग को सुरक्षित रूप से स्टोर करते हैं और hash value भी जनरेट करते हैं।
यदि अपराध स्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं की गई, तो न केवल न्याय में बाधा आती है, बल्कि पुलिस की कार्रवाई भी संदेह के घेरे में आ जाती है।
7. Zero FIR दर्ज करने से मना करना
जब कोई व्यक्ति किसी अपराध की रिपोर्ट लेकर थाने पहुंचता है और वहां से यह कहकर लौटा दिया जाता है कि "यह हमारे क्षेत्राधिकार में नहीं आता", तो यह न केवल गैरकानूनी है बल्कि पीड़ित के अधिकारों का हनन भी है। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में अब यह स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी थाना क्षेत्र में Zero FIR दर्ज की जा सकती है।
Zero FIR का मतलब है — ऐसी FIR जो उस थाना क्षेत्र से बाहर की घटना से संबंधित हो लेकिन उसे वहां अस्थायी रूप से दर्ज किया जाए। बाद में यह FIR उचित क्षेत्र के थाने को स्थानांतरित कर दी जाती है। BPRD SOP में यह एक आवश्यक प्रावधान बताया गया है जिसे हर पुलिसकर्मी को समझना और पालन करना चाहिए।
Advance Scientific Course – Delhi Police में भी यह जोर देकर कहा गया है कि Zero FIR दर्ज करने से मना करना न्याय प्रक्रिया में बाधा डालने के बराबर है। खासकर बलात्कार, सड़क दुर्घटना, अपहरण, महिला उत्पीड़न जैसे मामलों में तत्काल FIR दर्ज करना और मेडिकल सहायता देना प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि क्षेत्राधिकार पर बहस।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया अब तकनीकी अड़चनों से मुक्त करने के उद्देश्य से बनी है। यदि पुलिस Zero FIR लेने से मना करती है, तो यह SOP और कानून दोनों का उल्लंघन है।
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8. निष्कर्ष (Conclusion)
FIR दर्ज करना केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह न्याय की पहली और सबसे महत्वपूर्ण सीढ़ी है। अगर इस सीढ़ी पर गलती हो गई, तो पूरा केस गिर सकता है। इस ब्लॉग में हमने विस्तार से चर्चा की उन 7 घातक गलतियों की जो अक्सर पुलिसकर्मी BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के दौरान कर बैठते हैं।
हमने देखा कि शिकायतकर्ता का बयान अगर ठीक से न लिखा जाए, FIR में समय और तारीख का उल्लेख न हो, या FIR दर्ज करने में देरी हो और उसका औचित्य न दिया जाए — तो ये सभी गलतियाँ केस को कमजोर बना देती हैं। इसी तरह Preliminary Enquiry का गलत इस्तेमाल, FIR में हस्ताक्षर न लेना, अपराध स्थल की रिकॉर्डिंग न करना और Zero FIR दर्ज करने से मना करना भी SOP के उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं।
BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया अब बेहद स्पष्ट, तकनीकी और संवेदनशील हो चुकी है। BPRD SOP और Advance Scientific Course – Delhi Police जैसे स्रोत हमें सिखाते हैं कि कैसे हम हर कदम को दस्तावेज़ीकृत, प्रमाणिक और न्यायसंगत बना सकते हैं।
आज जरूरत है कि हर पुलिसकर्मी इन SOP को न केवल पढ़े, बल्कि अपने कार्य में पूरी ईमानदारी और सटीकता से लागू करे। हर सही दर्ज की गई FIR न केवल पीड़ित को न्याय दिलाने में मदद करती है, बल्कि पुलिसिंग में भरोसा भी बढ़ाती है।
आइए, हम सब मिलकर BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया को सही दिशा में अपनाएं और व्यवस्था को और बेहतर बनाएं।
FAQs: BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया से जुड़े सामान्य प्रश्न
Q1: क्या BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया पहले से अलग है?
उत्तर:
हाँ, BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया पहले से अधिक स्पष्ट, डिजिटल और जवाबदेह हो गई है। अब FIR को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज किया जा सकता है और BPRD SOP के अनुसार प्रक्रिया पूरी तरह निर्धारित की गई है।
Q2: क्या Preliminary Enquiry हर केस में जरूरी है?
उत्तर:
नहीं, Preliminary Enquiry केवल उन्हीं मामलों में की जा सकती है जहां सजा 3 से 7 साल के बीच हो और मामला संदेहास्पद हो। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के अनुसार संज्ञेय अपराध की सूचना मिलते ही FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
Q3: Zero FIR क्या होती है और पुलिस इसे क्यों दर्ज नहीं करती?
उत्तर:
Zero FIR वह प्राथमिकी होती है जो किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है, भले ही अपराध कहीं और हुआ हो। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया में Zero FIR का प्रावधान स्पष्ट है। इसे न लेना SOP और कानून दोनों का उल्लंघन है।
Q4: FIR में शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर लेना जरूरी क्यों है?
उत्तर:
शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर FIR की वैधता का प्रमाण होता है। BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के अनुसार, FIR दर्ज करने के बाद उसकी प्रति हस्ताक्षर के साथ मुफ्त में दी जानी चाहिए।
Q5: FIR दर्ज करने में देरी हो जाए तो क्या करें?
उत्तर:
अगर FIR दर्ज करने में देरी होती है तो BNSS 2023 में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया के अनुसार उसका स्पष्ट कारण FIR में लिखा जाना चाहिए। देरी का औचित्य न होना केस को कमजोर बना सकता है।
Blog Summary: BNSS 2023 mein FIR darj karne ki prakriya – 7 badi galtiyaan jo police aksar karte hain
BNSS 2023 mein FIR darj karne ki prakriya police officers ke liye ek clear, transparent aur legal framework provide karti hai. Is blog post mein humne un 7 ghataak galtiyon par focus kiya hai jo aksar SHO aur IOs FIR darj karte waqt kar dete hain — jinka asar poore case aur nyay prakriya par padta hai.
Section 1 mein introduction diya gaya hai jisme bataya gaya ki FIR kyun zaroori hai aur BNSS 2023 aur BPRD SOP ka kya role hai.
Section 2 batata hai ki agar police complaint ka bayaan sahi tarah se nahi likhti, toh case ki buniyad hi kamzor ho jaati hai.
Section 3 mein time aur date ka importance highlight kiya gaya hai — yeh detail missing hone par FIR court mein questionable ban sakti hai.
Section 4 aur 5 PE misuse aur delay justify na karne ki problem explain karte hain, jahan BNSS section 173 ka reference diya gaya hai.
Section 6 aur 7 procedural galtiyon ko cover karte hain jaise FIR copy na dena, ya video recording skip karna — jo evidence ki authenticity ko challengeable bana dete hain.
Section 8 mein Zero FIR na lena ek badi galti mani gayi hai — jo BNSS aur citizen rights dono ka violation hai.
Conclusion section har galti ka recap karta hai aur police officers ko encourage karta hai ki wo BNSS 2023 mein FIR darj karne ki prakriya ko puri imaandari se apnaayein.
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